🙏 श्री रामायण आवाहन 🙏
॥ श्री रामायण आवाहन ॥
॥ श्री रामायण आवाहन ॥
जो सुमिरत सिधि होइ, गन नायक करिबर बदन ।
करउँ अनुग्रह सोई, बुद्धि रासि सुभ गुन सदन ॥
मूक होइ बाचाल, पंगु चढ़इ गिरिबर गहन ।
जासु कृपाँ सो दयाल, द्रवउँ सकल कलि मल दहन ॥
नील सरोरुह स्याम, तरुन, अरुन बारिज नयन ।
करउँ सो मम उर धाम, सदा क्षीरसागर सयन ॥
कुंद इंदु सम देह, उमा रमन करुना अयन ।
जाहि दिन पर नेह, करउ कृपा मर्दन मयन ॥
बंदउॅ गुरु पद कंज, कृपा सिंधु नररूप हरि ।
महामोह तम पुंज, जासु बचन रबि कर निकर ॥
बंदउँ मुनि पद कंजु, रामायन जेहि निरमयऊ ।
सखर सुकोमल मंजु, दोष रहित दूषन सहित ॥
बंदउँ चारिउ बेद, भव बारिधि बोहित सरिस ।
जिन्हहि न सपनेहुॅ खेद, बरनत रघुबर बिसद जसु ॥
बंदउँ बिधि पद रेनु, भव सागर जेहिं कीन्ह यहँँ ।
संत सुधा ससि धेनु, प्रगटे खल विष बारुनी ॥
बंदउॅ अवध भुआल, सत्य प्रेम जेहि राम पद ।
बिछुरत दीनदयाल, प्रिय तनु तृन इव परिहरेउ ॥
नीलोत्पल तन श्याम, काम कोटी शोभा अधिक ।
सुनिय तासु गुन ग्राम, जासु नाम कि अधिक ॥
मुक्ति जन्म महि जानि, ज्ञान खनि अध हानि कर ।
जहँ बस शम्भू भवानी, हो काशी सेंगर ने कर ॥
जयंत सकल सुन वृन्द, विषय गर्ल जेहि पान क्रिय ।
ताहि न भवति मति मन्द, को कृपाल शंकर सरिस ॥
बन्दउँ पवनकुमार, खल-वन पावक ग्यान घन ।
जासु ह्र्दय आगार बसहिं राम सर चाप धर ॥
विविध विप्र बुध गुरु चरण, बन्दि कहेऊँ कर जोरि ।
होई प्रसन्न पुखहु सकल, मन्जु मनोरथ मोरि ॥
राम कथा के रसिक तुम, भक्ति राशि मति धीर ।
आय सो आसन लीजिये, तेज पुंज कपि वीर ॥
रामायण तुलसी कृत, कहऊ कथा अनुसार ।
प्रेम सहित आसन गहऊ, आवहु पवन कुमार ॥
लाल देह लाली लसै, अरू-धरू लाल लॅगुर ।
वज़ देह दानव दलन, जय जय जय कपि शुरू ॥
बन्दउँ गणपति शिवगिरी, महावीर बजरंग ।
विघ्न रहित पूर्ण करहु रघुबर कथा प्रसंग ॥
॥ सियावर रामचंद्र जी की जय ॥
॥ उमा पति महादेव जी की जय ॥
॥ पवनसुत हनुमानजी की जय ॥
॥ गोस्वामी तुलसीदास जी की जय ॥
॥ बोलो भाई सब संतो की जय ॥